बहुत समय पहले एक ब्राह्मण की सात पुत्रियाँ और एक पुत्र था। करवा चौथ का दिन था। सब बहनों ने व्रत रखा था। दिन भर व्रत रखने के बाद जब रात हुई, तो सभी बहनें चाँद निकलने की प्रतीक्षा करने लगीं ताकि चाँद देखकर अर्घ्य देकर अपना व्रत खोल सकें।
सबसे छोटी बहन भी बहुत भूखी और प्यासे थी। लेकिन चाँद निकलने का नाम नहीं ले रहा था। छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं गई। उसने एक चाल चली। उसने एक ऊँचे पेड़ पर चढ़कर चलनी के पीछे दीपक जलाया, जिससे ऐसा लगा जैसे चाँद निकल आया हो।
भाई बोला — “देखो बहन! चाँद निकल आया है, अब तुम व्रत खोल लो।”
बहन ने बिना सोचे समझे अर्घ्य दिया और व्रत तोड़ लिया।
लेकिन जैसे ही उसने पहला कौर खाया, उसका पति मूर्छित होकर गिर पड़ा। परिवार के सभी लोग घबरा गए। तब उसकी बड़ी बहन ने बताया — “छोटी बहन! तूने झूठा चाँद देखकर व्रत तोड़ा है, इसलिए यह अशुभ हुआ है।”
छोटी बहन को बहुत पछतावा हुआ। उसने अपने पति की लंबी आयु के लिए सच्चे मन से करवा माता और भगवान शिव-पार्वती की आराधना की। उसने लगातार कई दिनों तक व्रत रखा और देवी पार्वती से क्षमा माँगी। उसके सच्चे प्रेम और तप से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने कहा –
“बेटी, तेरा पति शीघ्र ही स्वस्थ हो जाएगा, और आने वाले जन्मों में भी तू सुहागन ही रहेगी।”
इसके बाद उसका पति जीवन में लौट आया। तब से करवा चौथ का व्रत हर साल सौभाग्य और पति की लंबी उम्र के लिए किया जाने लगा।
करवा चौथ व्रत का महत्व
- यह व्रत सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति की लंबी आयु और सुखी दांपत्य जीवन के लिए करती हैं।
- इस दिन महिलाएँ निर्जला उपवास (बिना पानी के व्रत) रखती हैं।
- रात को चाँद देखकर, अर्घ्य देकर और पति के हाथ से जल ग्रहण करके व्रत पूरा करती हैं।
- यह व्रत श्रद्धा, प्रेम और विश्वास का प्रतीक माना जाता है।
करवा चौथ व्रत विधि (संक्षेप में)
- सुबह सूर्योदय से पहले सरगी (सास द्वारा दिया गया भोजन) ग्रहण किया जाता है।
- पूरे दिन बिना अन्न-पानी के व्रत रखा जाता है।
- शाम को करवा माता की पूजा, कथा वाचन और आरती की जाती है।
- चाँद निकलने पर उसे चलनी से देखकर अर्घ्य दिया जाता है।
- फिर पति के हाथ से पानी लेकर व्रत तोड़ा जाता है।