nirjala-ekadashi-vrat-katha

Nirjala Ekadashi 2025: व्रत की पूरी जानकारी और महत्व

निर्जला एकादशी 2025 की तिथि और समय

  • तिथि: सोमवार, 2 जून 2025
  • एकादशी प्रारंभ: 2 जून, सुबह 04:02 बजे
  • एकादशी समाप्त: 3 जून, सुबह 05:54 बजे
  • व्रत पारण (उपवास खोलने का समय): 3 जून, सुबह 05:54 से 08:38 बजे तक

निर्जला एकादशी व्रत कैसे करें? (Step-by-Step विधि)

🔹 1. दशमी तिथि (1 दिन पहले)

  • दिन में एक बार सात्विक भोजन करें।
  • रात्रि में भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए सोएं।

🔹 2. एकादशी तिथि (2 जून 2025)

  • सूर्योदय से पूर्व स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें।
  • घर के पूजा स्थान में दीप जलाकर भगवान विष्णु की पूजा करें।
  • व्रत का संकल्प लें – “मैं निर्जला एकादशी का उपवास कर रहा/रही हूँ।”
  • इस दिन जल, अन्न, फल – कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता (निर्जला)।
  • दिनभर व्रत रखकर भगवान विष्णु का ध्यान करें, विष्णु सहस्त्रनाम या मंत्रों का जाप करें।
  • रात्रि को भी भगवान का भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।

🔹 3. द्वादशी तिथि (3 जून 2025)

  • सूर्योदय के बाद स्नान करें और भगवान विष्णु की पूजा करें।
  • ब्राह्मण या ज़रूरतमंद को दान करें (जल, अन्न, वस्त्र आदि)।
  • इसके बाद व्रत का पारण करें – जल एवं फलाहार से उपवास समाप्त करें।

निर्जला एकादशी व्रत कथा (विस्तृत रूप में)

यह कथा महाभारत काल की है और इसका मुख्य पात्र हैं पांडवों में से बलशाली भीमसेन। भीम की भूख बहुत अधिक थी, इसलिए वे कभी उपवास नहीं कर पाते थे, जबकि धर्म की दृष्टि से एकादशी व्रत करना अत्यंत आवश्यक माना गया है।

भीमसेन और व्यास ऋषि का संवाद

एक दिन भीमसेन ने व्यास ऋषि से निवेदन किया,

“गुरुदेव! मेरे तीनों भाई – युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव – तथा माता कुंती नियमित रूप से एकादशी व्रत करते हैं। वे दिनभर कुछ नहीं खाते और रात में प्रभु का स्मरण करते हैं। मैं भी यह धर्म निभाना चाहता हूँ, लेकिन मेरी भूख अधिक होती है, इसलिए मैं उपवास नहीं कर पाता। क्या कोई उपाय है जिससे मैं भी पुण्य प्राप्त कर सकूं?”

व्यास मुनि ने कहा,

“हे भीम! यदि तुम साल की सभी 24 एकादशियों का पुण्य एक साथ पाना चाहते हो, तो ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को केवल एक दिन व्रत करो, परंतु वह व्रत बहुत कठिन है – उस दिन जल तक ग्रहण नहीं करना होता।

भीम ने पूछा,

“गुरुदेव! क्या उस दिन पानी पीना भी वर्जित है?”

व्यासजी बोले,

“हाँ, इसलिए इसे ‘निर्जला एकादशी’ कहा जाता है। यह उपवास शरीर के लिए कठिन है, लेकिन पुण्य अपार है। यदि तुम यह एक व्रत पूरे नियम और श्रद्धा से करोगे, तो तुम्हें पूरे वर्ष की एकादशियों का फल मिलेगा और अंत में विष्णु लोक की प्राप्ति होगी।”

भीमसेन ने गुरुदेव की आज्ञा मानी और जब ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी आई, तब उन्होंने दिनभर बिना अन्न और जल ग्रहण किए उपवास रखा। वह दिन उनके लिए बहुत कठिन रहा – शरीर दुर्बल हो गया, किंतु उन्होंने हार नहीं मानी। रात्रि में भगवान विष्णु का भजन करते हुए उन्होंने व्रत पूर्ण किया और अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण किया।

भीम की आस्था से प्रसन्न हुए भगवान विष्णु

भीम की इस तपस्या और आस्था से भगवान विष्णु अति प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि

“हे भीम! तुमने इस कठिन व्रत को करके न केवल अपने पापों से मुक्ति पाई है, बल्कि इस व्रत से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह 24 एकादशियों से भी अधिक है। जो भी श्रद्धा से निर्जला एकादशी व्रत करेगा, वह मोक्ष को प्राप्त करेगा।”

निर्जला एकादशी व्रत के लाभ

  • वर्ष की सभी एकादशियों के बराबर फल एक ही दिन में प्राप्त होता है।
  • यह व्रत पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग बनाता है।
  • मानसिक शुद्धता, आत्मिक शांति और ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।
  • भक्तों को आरोग्य, समृद्धि और शुभता का आशीर्वाद मिलता है।

जरूरी सावधानियाँ

  • यह व्रत बहुत कठोर है; यदि स्वास्थ्य अनुमति न दे, तो फलाहार या जल ग्रहण करके भी श्रद्धापूर्वक किया जा सकता है।
  • गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग और बीमार व्यक्ति डॉक्टर या आचार्य की सलाह से व्रत करें।
  • भाव और निष्ठा से किया गया व्रत ही फलदायी होता है।

निष्कर्ष:

निर्जला एकादशी व्रत न केवल उपवास का प्रतीक है, बल्कि यह आत्मसंयम, भक्ति और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का भी प्रतीक है। जो व्यक्ति यह व्रत श्रद्धा से करता है, उसे समस्त पापों से मुक्ति और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *