Sheetala Saptami 2025

शीतला सप्तमी 2025: जानिए शीतला माता की पावन कथा और महत्व!

शीतला सप्तमी का पर्व हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखता है। यह दिन देवी शीतला माता को समर्पित होता है और प्रमुख रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। शीतला सप्तमी को बसोड़ा पर्व के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें लोग बासी भोजन ग्रहण करते हैं। इस लेख में, हम शीतला माता की कथा, पूजन विधि, तिथि, महत्व और इस पर्व से जुड़ी मान्यताओं के बारे में विस्तार से जानेंगे।

शीतला सप्तमी 2025 की तिथि और समय

शीतला सप्तमी 2025 में फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाएगी। इस दिन महिलाएँ अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए व्रत और पूजन करती हैं।

शीतला माता का परिचय

शीतला माता को रोगों से मुक्ति दिलाने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वे चेचक, खसरा और अन्य संक्रामक रोगों की देवी मानी जाती हैं। उनकी पूजा करने से इन रोगों से बचाव होता है और घर में शांति बनी रहती है।

शीतला माता की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है, जब एक गांव में एक महिला शीतला माता की पूजा किया करती थी। वह माता को बासी भोजन अर्पित करती थी और बदले में उसके परिवार पर माता की कृपा बनी रहती थी। एक दिन गांव की अन्य महिलाओं ने उसका उपहास उड़ाया और ताजा भोजन चढ़ाने को कहा। महिला ने माता के निर्देशों का पालन करते हुए बासी भोजन ही अर्पित किया।

इसके बाद, पूरे गांव में चेचक जैसी महामारी फैल गई, लेकिन उस महिला का परिवार सुरक्षित रहा। तब सभी को एहसास हुआ कि माता शीतला की कृपा से ही उसका परिवार स्वस्थ रहा। इसके बाद से यह परंपरा बन गई कि शीतला सप्तमी के दिन बासी भोजन का सेवन किया जाता है।

शीतला सप्तमी की पूजन विधि

शीतला माता की पूजा विशेष रूप से प्रातःकाल की जाती है। इसकी विधि इस प्रकार है:

  1. स्नान एवं संकल्प: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
  2. मंदिर में पूजन: देवी शीतला माता की प्रतिमा के सामने दीप जलाएं और धूप-अगरबत्ती अर्पित करें।
  3. बासी भोजन का भोग: इस दिन विशेष रूप से एक दिन पहले बना हुआ भोजन माता को अर्पित किया जाता है। इसमें रोटी, चावल, दही, गुड़ आदि शामिल होते हैं।
  4. कहानी वाचन: व्रती महिलाओं द्वारा शीतला माता की कथा सुनी और सुनाई जाती है।
  5. प्रसाद वितरण: पूजन के पश्चात प्रसाद वितरित किया जाता है और बासी भोजन ग्रहण किया जाता है।

शीतला माता की पूजा का महत्व

  1. रोगों से मुक्ति: माता की पूजा करने से त्वचा और संक्रामक रोगों से बचाव होता है।
  2. सुख-समृद्धि: इस दिन व्रत रखने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
  3. बच्चों की रक्षा: माता शीतला विशेष रूप से बच्चों को रोगों से बचाने वाली देवी मानी जाती हैं।

शीतला सप्तमी और बसोड़ा पर्व

शीतला सप्तमी को बसोड़ा पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन बासी भोजन खाने की परंपरा है, क्योंकि इसे शीतला माता का प्रसाद माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन ताजा भोजन नहीं बनाया जाता और पहले से बना भोजन ही ग्रहण किया जाता है।

आधुनिक संदर्भ में शीतला सप्तमी

आज के समय में भी शीतला सप्तमी का पर्व उसी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। हालांकि, बदलते समय के साथ पूजा की विधियों में कुछ बदलाव आए हैं, लेकिन लोगों की आस्था में कोई कमी नहीं आई है।

निष्कर्ष

शीतला सप्तमी एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है जो हमें माता शीतला के प्रति श्रद्धा और आस्था को बढ़ाने की प्रेरणा देता है। यह पर्व हमें स्वच्छता और स्वास्थ्य के महत्व को भी समझाता है। 2025 में इस शुभ दिन को पूरी निष्ठा और भक्ति के साथ मनाएं और माता शीतला की कृपा प्राप्त करें।

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